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युवा कवि धर्मेन्द्र उनियाल ‘धर्मी’ की एक रचना… हम संघर्षों की हर कहानी भूल गए..

धर्मेंद्र उनियाल धर्मी
अल्मोड़ा, उत्तराखंड 

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हम संघर्षों की हर कहानी भूल गए,
पहाड़ों का पानी ज़वानी भूल गए।

बस हिलटॉप ही रही, याद सब को,
और हम कच्ची दारू बनानी भूल गए।

अंग्रेजी शराब से किया गला तर और,
वो नदी झरनों का मीठा पानी भूल गए।

देहरादून के मोह में फंसकर ऐ दगड़िया,
अपनी नई नवेली राजधानी भूल गए।

सौ गज के प्लाट की हसरत में दोस्त,
हम डिंड्याली तिबारी पुरानी भूल गए।

ग़मलों में यूं उगाने लगे सब्जियों को,
कि हम सारी खेती किसानी भूल गए।

मोबाइल गेम में फंसकर ये नए बच्चे,
बचपन की सारी नादानी भूल गए।

फेसबुक के हजारों दोस्तों की भीड़ में,
हम सूरतें सब जानी पहचानी भूल गए।

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