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कवि जीके पिपिल की एक ग़ज़ल… छोटे हैं बड़े हैं और ये मंझोले हैं

जीके पिपिल
देहरादून,उत्तराखंड


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गज़ल
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छोटे हैं बड़े हैं और ये मंझोले हैं
लेकिन ये बारूद से भरे गोले हैं।

एक के फटने से सब फट पड़ेंगे
ये मज़हबी चिंगारी नहीं शोले हैं।

सभी डसना चाहते हैं मुल्क़ को
ये नाग हैं नागिन हैं या सपोले हैं।

चोर चकारे ही घर में घुस बैठे हैं
ये शातिर हैं या घर वाले भोले हैं।

प्यार की बात तो कभी नहीं बोले
हमेशा नफ़रतों की बोली बोले हैं।

ये हमें भी काटने से नहीं चूकेंगे
भले भाई हम इनके मुँह बोले हैं।

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