कवि/शाइर जीके पिपिल की गजल … दुख तो बहुत है लेकिन मैं उसकी ख़बर नहीं करता
जीके पिपिल
देहरादून, उत्तराखंड
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गज़ल
दुख तो बहुत है लेकिन मैं उसकी ख़बर नहीं करता
कोई दुआ कोई दवा कोई मरहम असर नहीं करता
सारी सहूलियतें मौजूद हैं वहां जिंदा रहने के वास्ते
मगर घर पराया है इसलिए उसमें बसर नहीं करता
रखी होंगी उसके तहखाने में बहुत सी नायाब चीज़ें
हम कैसे मान लें जब वो हमें कुछ नज़र नहीं करता
जो इंसान ख़ुद ही कमज़ोर है कृष काय है निरीह है
वो दूसरों के साथ भी कभी जुल्म जबर नहीं करता
कोई चाहकर भी उसका क्या नुकसान कर सकेगा
खुदा किसी की वक्त पर इमदाद अगर नहीं करता
सहनशीलता इस क़दर छा गई है अब व्यक्तित्व पर
कि बदले की कार्यवाही ज़रूरी है मगर नहीं करता
मुलाजमीयत में नाफरमानी की कोई गुंजाइश नहीं
हुक्म बजा लाने में वो कोई अगर मगर नहीं करता
ना जाने कौन उसके पथ में बाधा बनता है बार बार
वो चाहता तो है अच्छे कर्म करना मगर नहीं करता