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वरिष्ठ कवि जीके पिपिल की एक रचना … जो बेअसर रहीं उन दुआओं को भी याद करना

जीके पिपिल
देहरादून, उत्तराखंड


ग़ज़ल

जो बेअसर रहीं उन दुआओं को भी याद करना
सिर्फ़ जफ़ा ही नहीं वफ़ाओं को भी याद करना।

तूफ़ान से तो बस बुझते ही हैं जलते हुये चिराग़
जिनसे जलते हैं उन हवाओं को भी याद करना।

जब कभी भी तुमको सोचने की फ़ुर्सत मिले तो
मेरी ही नहीं अपनी ख़ताओं को भी याद करना।

तुम सुनकर भी अनसुना करती रही हो जिनको
बीमार दिल की उन सदाओं को भी याद करन।

कभी तो तुमको भी भटकना पड़ेगा वीरानियों में
दोनों थे जिनमें उन फ़िज़ाओं को भी याद करना।

बड़ी मुश्किलों से हम पहुँच पाए हैं मंजिलों तक
राह में जो झेलीं उन बलाओं को भी याद करना।

उल्फ़त में ज़ख्म अगर पहले भी मिले हैं तुम्हें तो
ठीक जिनसे हुये उन दवाओं को भी याद करना।

मोहब्बत का क़त्ल करने की सोचते तो हो मगर
क़त्ल की जो हैं उन दफ़ाओं को भी याद करना।।

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