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वरिष्ठ कवि जीके पिपिल का राजनीति पर एक मुक्तक … कभी टोपी तो कभी सर का ताज बदल लेता है..

जीके पिपिल
देहरादून, उत्तराखंड

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कभी टोपी तो कभी सर का ताज बदल लेता है
बड़ा ही शातिर है नये नये अंदाज़ बदल लेता है,
जब कभी नहीं लगती राजनीति मुफ़ीद उस को
तो फ़िर वो पार्टी तो कभी समाज बदल लेता है।।

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