किसान की व्यथा कहती कवि जसवीर सिंह हलधर की शानदार कविता
जसवीर सिंह हलधर
देहरादून, उत्तराखंड
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गीत -कृषक भूल
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सोना खेतों ने उगला जब,
ठीक तरह हम तोल न पाये!
माना बेईमान हुए वो,
हम भी तो कुछ बोल न पाये!!
खेती का वरदान मिला था,
हम धरती के महा रथी थे!
साहूकारों की मंडी में,
छुपकर बैठे पतित पथी थे!
उनको मालिक मान लिया क्यों,
अपना खाता खोल न पाये!
माना बेईमान हुए वो,
हम भी तो कुछ बोल न पाये!!1
बहुत सरल होता है यारो,
महज हवा में किले बनाना!
लेकिन काम कठिन है भाई,
दानों की कीमत घर लाना!
आँखों आगे माल चुराया,
दो पग आगे डोल न पाये!
माना बेईमान हुए वो,
हम भी तो कुछ बोल न पाये!!2
अपनी बात सुनाते रहना,
चार जनो में ज्ञानी बनकर!
व्यापारी के संग कभी क्या,
सौदा कर पाये हम तनकर!
रंग बदलते बाज़ारों में,
अपनी राह टटोल न पाये!
माना बेईमान हुए वो,
हम भी तो कुछ बोल न पाये!!3
संसद बैठे नेताओं ने,
खूब दिखाये स्वप्न उजाले!
उनके कोरे वादों से क्या,
मिट पाये हाथों के छाले
वादे पूरे ना होने पर,
बक्कल उनका छोल न पाये!
माना बेईमान हुए वो,
हम भी तो कुछ बोल न पाये!!4
सच है दौड़ नहीं पाये हम,
बाजारू आपा धापी में!
मंडी में बैठे शातिर ने,
झोल किया नापा नापी में!
जब वो लीन हुए इस मध में,
नियत उनकी तोल न पाये!
माना बेईमान हुए वो,
हम भी तो कुछ बोल न पाये!!5