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वरिष्ठ कवि जय कुमार भारद्वाज की एक कविता… शब्द: होता है भारहीन पर.. हल्का नहीं होता

जय कुमार भारद्वाज
देहरादून, उत्तराखंड


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शब्द:
वह यथार्थ है मित्र
जो अन्तस के धरातल से फूटता है,
वह पुकार है
जो आत्मा की गहराई से निकलकर
आकाश की ऊंचाई को छूता है।

शब्द:
वह आभा है
जिस की कान्ति से
इतिहास चमकता है।
पीढियाँ सहेज कर रखती हैं जिसे
पीढियों के लिए
पीढियों तक।

शब्द:
होता है भारहीन
पर हल्का नहीं होता।

शब्द:
होता है सूक्ष्म
पर छोटा नहीं होता।
देख सकते हो तो देखो –
शब्द के आर-पार,
समझ सकते हो समझो-
शब्द की व्यापकता,
पहचान सकते हो तो पहचानो-
शब्द का विराटत्व।

उतर सकते हो तो उतरो-
शब्द की गहराई तक,
उड सकते हो तो उडो-
शब्द की ऊंचाई तक।
जा सकते हो तो जाओ,
अंतिम छोर तक
शब्द के….

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