जैन साध्वी जी महाराज संबोधि श्री की कोरोना का दर्द बयां करती रचना
जैन साध्वी जी महाराज संबोधि श्री
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सिसकता दर्द
तर्ज — जीत ही लेंगे बाजी …
बेबस बन गोविंद को खोया-2
क़ायनात सारी रो पड़ी!
खोजे उपाय, हारते जायें,
टाल ना पाये वो घड़ी!!
ज़ालिम है मौत की घड़ी!
क़ायनात सारी रो पड़ी!!
चलते फिरते दोस्त परिवारी जन,
एकदम बेजान बनें.
जाने क्या तन से निकल जाता है,
निष्प्राण होते अपने
चूर-चूर होते सपने,
बंदा क्यों लाश कहलाता
इ़सां क्यों लाश कहलाता.
काम ना करती खोपड़ी!!
खोजे उपाय……पाये वो घड़ी!!
ज़ालिम है मौत की घड़ी
क़ायनात सारी रो पड़ी!!
साधारण हो चाहे कोई विशेष,
सबको दबोचा मृत्यु ने,
सूरमा साधु सिकंदर योगी,
युक्तियाँ खोजते गुमे
सारे इस भाड़ में भुने,
मौत से न कोई जीत पाया-2
हाथ मलें महल झोंपड़ी!
खोजे उपाय…..पाये वो घड़ी!!
ज़ालिम है मौत की घड़ी
क़ायनात सारी रो पड़ी!!
जन्मा जो मरना पड़ेगा उसे,
सबकी कहानी यही.
बच्चा जवान ना देखती वो,
हर किसी को मौत छीनती
है ना किसी की ये सगी,
देखते ही देखते साँसें-2
चलते चलते ही उखड़ीं!
खोजे उपाय….. पाये वो घड़ी!!
ज़ालिम है मौत की घड़ी
क़ायनात सारी रो पड़ी !!
डरना रोना धोना छोड़कर,
स्वागत करें काल का.
मार्ग कहा जो ऋषि मुनियों ने,
समझा जो जीत वो सका
पाई अमरता सफलता.
कट गए ‘सम्बोधि’ के बंधन-2
मिल गई निजानंद जड़ी!!
खोजे उपाय….. पाये वो घड़ी!
ज़ालिम है मौत की घड़ी
क़ायनात सारी रो पड़ी!!