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कवि सतीश बंसल की एक रचना… मंज़िलों की राह में ये मोड़ है कैसा बता

सतीश बंसल
देहरादून, उत्तराखंड


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मंज़िलों की राह में ये मोड़ है कैसा बता
ज़िन्दगी तेरा इरादा और कुछ है क्या, बता

इल्तिजा है फ़ैसले की इल्तिजा पर गौर कर
या मुझे ख़ुद में समा ले या मुझे रस्ता बता

टाल दे फ़िर से मुझे आजाद करने की घड़ी
फिर बना कोई कहानी फ़िर कोई किस्सा बता

क्यूँ अचानक गुफ़्तगू के सिलसिले हैं ग़ैर से
यार मुझसे है तुझे कोई अगर शिकवा बता

ओढ तू भी ढोंग का चोला हया को बेच कर
मजहबों के नाम होती लूट को चंदा बता

नाम का चलने लगा सिक्का तेरे बाज़ार में
यार तू भी खूब अब खोटा मुझे सिक्का बता

आईना कर सामने अपना गिरेबां झाँक तो
फ़िर किसी को आदमी बंसल बुरा अच्छा बता

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