सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली’ की एक रचना… है जहाँ में जो सबसे न्यारा
सुलोचना परमार उत्तरांचली
देहरादून, उत्तराखंड
—————————————————————-
मेरा हिन्दुस्तान
है जहाँ में जो सबसे न्यारा
वो मेरा हिन्दुस्तान है।
कौम कोई भी यहाँ हो
सबका ही सम्मान है।
है हिमालय मुकुट इसका
नदियाँ पांव पखारती।
दिल की धड़कन हैं सभी हम
करते हैं इसकी आरती।
अनेकता में एकता जहाँ
वो अपना हिन्दुस्तान है।
ईद पर गले हैं मिलते
होली पे छेड़े तान है।
कड़ी साधना से बनाया
अपना संविधान है।
जहाँ चलें सरकारें इससे
वो मेरा हिन्दुस्तान है।
सूर्य किरणे करें स्वागत
मुस्कुराता आसमान है।
रंग-बिरंगे फूलों से महका जो
वो मेरा हिन्दुस्तान है ।
ये ऋषि मुनियों की है धरती
और बांसुरी की तान है।
राम-कृष्ण पैदा हुए जहाँ
वो मेरा हिन्दुस्तान है।
जहाँ पत्थर में भगवान दिखें
और गाय माँ समान है।
जहाँ वृक्षों को भी पूजा जाता
वो मेरा हिन्दुस्तान है।
दोस्त बनकर आये दुश्मन
उनका भी होता मान है।
जो सभी को मान देता
वो मेरा हिन्दुस्तान है।
देश हित जहाँ सिर कटाना
ये सभी का मान है।
मात-पिता को इस दौर में
मिलता जहां सम्मान है।
वो मेरा हिन्दुस्तान है।