कवयित्री तारा पाठक की एक कविता.. नहीं, ये नहीं मेरे देश का किसान है..

तारा पाठक
वर्सोवा मुंबई, महाराष्ट्र
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मेरा अन्नदाता ऐसा नहीं
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जिसकी बातों में
खाद, बीज और पानी हो
वो मेरे देश का किसान है।
जिसके हाथ हल की मूंठ पर
पैर कीचड़ से सने हों
वो मेरे देश का किसान है।
स्वयं कृशकाय है जो
मगर हम सबका अन्नदाता
वो मेरे देश का किसान है।
निश्छल-सरल जिसका आचरण
सबके हित चिन्तनरत है जो
वो मेरे देश का किसान है।
लेकिन जिनकी बातें
अलगाववादी की।
बिगड़े सुर-तान हैं।
जिनके हाथों में विद्रोह के झंडे
पदचाप में जलजले का भान है।
अन्नदाता हो नहीं सकते ये
न कृशकाय उनके समान हैं।
न ही सरल, भोले-भाले
न परहित इनका प्रयोजन।
ये कुछ भटके, कुछ भटकाए से
कुछ कुटिल चाल में भरमाए से।
किसी और के इशारों पर नाच रहे हैं।
किसी और का निशाना साध रहे हैं।
गणतंत्र दिवस के पावन पर्व पर
राजधानी में ट्रैक्टर की धमक
ये किसी बड़े खतरे का निशान है।
नहीं ये नहीं मेरे देश का किसान है।
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सर्वाधिकार सुरक्षित।
प्रकाशित…..27/01/2021
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