कवि वीरेन्द्र डंगवाल “पार्थ” का श्रृंगार पर एक सुंदर गीत
वीरेन्द्र डंगवाल “पार्थ”
देहरादून, उत्तराखंड
———————————————————————–
अति सुन्दर मनभावन पावन रूप तुम्हारा।
तपते तन पर रिमझिम सावन रूप तुम्हारा।
चित्त निवासिनी तुम सपनों की चित्रावली भी
तुम कुसुंभ कुसुमासव और कुसुमावलि भी
हेमा हेमवती तुम ही दमयंती सी
प्रणय वल्लभा वरांगना किवदंती सी
राधा कान्हा का मन वृंदावन रूप तुम्हारा।।
अति सुन्दर मनभावन पावन रूप तुम्हारा।
तपते तन पर रिमझिम सावन रूप तुम्हारा।।
नीर गंग मलयानिल तुम ही दो लोचन
राग रंग रमणी रूपा रसना रोचन
अरुणोदय की स्वर्णिम आभा दर्पण हो
घोर तिमिर में पूनम प्रीत समर्पण हो
जनकसुता हिय रघुनंदन सा रूप तुम्हारा।।
अति सुन्दर मनभावन पावन रूप तुम्हारा।
तपते तन पर रिमझिम सावन रूप तुम्हारा।।
अवनि अम्बर तक ज्योतिर्मय चन्द्र प्रभा
धर दो जहां भी पग हो जाय इन्द्र सभा
पावन मंदिर का दीप तुम्हीं रोली चंदन
तुम्हीं सखा प्रिय जन्मोंजनम का हो बंधन
कमला यमारि का स्वर्ण सिंहासन रूप तुम्हारा।।
अति सुन्दर मनभावन पावन रूप तुम्हारा।
तपते तन पर रिमझिम सावन रूप तुम्हारा।।
Wah wah kya baat hai