होली: कवि वीरेंद्र डंगवाल “पार्थ” के कुछ प्रेममय छंद
वीरेंद्र डंगवाल “पार्थ”
देहरादून, उत्तराखंड
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1-
रुत मनभावन सी, परब सी पावन सी
महक महक रही, जीवन रंगोली है।
पुलकित तन मन, अवनी ओढ़े वसन
खग देखो गा रहे हैं, मीठी मीठी बोली है।
प्रीत जो धरोहर है, कितनी मनोहर है
मोहन ने राधिका के, नयनों में तोली है।
चित्त राग अनुराग, में कि सराबोर हुआ
मल दो गुलाल मोहे, आई सखा होली है।।
2-
राधा रानी नयनों से, बोलतीं है प्रीत जब
मोहन सम्मोहन में, चित्त हार जाते हैं।
मुग्ध हो के विचरण, होता प्रीत गलियों में
नेह का असीम तब, द्वार बन जाते है।
मोहक सी चितवन, खिल उठा मधुवन
मन की वीणा के वो तो, तार बन जाते हैं।
रास के वो रचियता, गोपियों के प्रिय सखा
राधिका के श्यामल जी, सार बन जाते हैं।।
3-
धरती धवल हुई, उमंगें नवल हुई
उम्मीदें प्रबल हुई, आया रे वसंत है।
विहान में है बहार, परिमल है कहार
भ्रमर हुआ चपल, आया रे वसंत है।
घोलती पवन मधु, मिलन मधुर ऋतु
प्रीत हो गई सरल, आया रे वसंत है।
डाल डाल पर झूम, रही फगुनाहट है
जीवन हुआ सबल, आया रे वसंत है।।