अंतरराष्ट्रीय नशा उन्मूलन दिवस पर विशेष… ग़ालिब छुटी शराब..
प्रतिभा की कलम से
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अंतरराष्ट्रीय नशा उन्मूलन दिवस… ग़ालिब छुटी शराब..
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“कौन कमबख्त बर्दाश्त करने को पीता है … हम तो पीते हैं कि सांस ले सकें” !
ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार साहब के जमाने से फिल्म “देवदास” का ये मशहूर संवाद आज भी पीने वालों की जुबान पर रटा-रटाया सा धरा रहता है।
मर्द हो चाहे औरत , शराब की लत एक बार जिसको लग गई तो फिर जिंदगी “साहब-बीवी और ग़ुलाम” की छोटी बहू जैसी बेसबब होती चली जाती है।
सब जानते हैं कि फिल्म में ही नहीं असल जीवन में भी छोटी बहू यानी मीना कुमारी ने शराब की वज़ह से कम उम्र में ही ये दुनिया खो दी।
उनकी तरह ही और भी बहुत सारे क़िस्से हैं जो ज़हानत और हुनर में बेमिसाल होने के बावजूद नशे के गर्त में डूबकर दुनिया को अलविदा कह गए।
ग़ज़ल गायकी में बेगम अख़्तर साहिबा के नाम से कौन अनजान होगा भला ! तमाम उम्र वो भी अपने जख़्मों को जाम में घोलकर पी जाने की कोशिश करती रहीं। शराब तो हर रात उनकी खुराक़ में शामिल होती ही थी, इसके अलावा सिगरेट से भी उन्हें कोई परहेज़ नहीं था। अपने साथ के शायर जैसे ज़िगर मुरादाबादी हों कि कोई और मुलाकाती ! तलब उठने पर किसी के भी सामने सिगरेट सुलगा लेने से बेगम साहिबा को गुरेज न था।
अल्लाह ने फ़न वह बख़्शा था कि एक मर्तबा जब हज के दौरान उनके सारे पैसे खत्म हो गए तो ख़ुदा की इबादत में सरेराह चादर बिछाकर आंख मूंद वो कुछ गाने लगीं। आंख खोलने पर देखती क्या हैं कि चादर पर ढेर लग गया है रुपयों का।
“अक्खा़ह ! तूने मेरी इज्ज़त रख ली , अब मैं शराब को कभी हाथ भी नहीं लगाऊंगी” । मगर इस वादे पर वह सिर्फ़ दो साल ही क़ायम रह सकीं, और उसके बाद फिर जो पीना शुरू हुआ तो ज़िंदगी का सिलसिला खत्म हुआ आंत के कैंसर पर।
बेगम अख़्तर का जिक्र हुआ है तो मेहंदी हसन भी याद आएंगे ही। इनसे जब भी पूछा जाता था कि कोई ऐसी आदत जो आप छोड़ना चाहते हों …
तो बड़ी लाचारी के साथ मेहंदी हसन साहब जवाब दिया करते थे कि हर रोज कोशिश करता हूं कमबख्त सिगरेट छूट जाए मगर फिर भी मुई दिन की बीस-पच्चीस हो ही जाती हैं। पूरी दुनिया में मेहंदी हसन जैसा गुलोकार न कभी कोई पैदा हुआ था और न कभी हो सकता है। लता जी ने जिस आवाज़ को ख़ुदा की आवाज़ मुकर्रर किया था, आखिरी समय में वही साथ छोड़ गई मेहंदी हसन साहब के गले का। जी हां ! सिगरेट का बहुत ज्यादा सेवन गले के कैंसर की वज़ह बन गया।
मौसिकी के बाद अगर अदब की बात करें तो जॉन एलिया और मजाज़ लखनवी जैसे कई नाम ऐसे हैं जिन्हें शायरी ने तो बहुत आला दर्जे तक पहुंचा दिया लेकिन शराब की लत ने बहुत बेगैऱत गुमनाम मौत के खाते में दर्ज़ करवा दिया। हां ! सआदात हसन मंटो जैसे मशहूर अफसानानिगार को भी तो कई-कई बार पागलखाने तक पहुंचा आई थी यही निगोड़ी शराब, और फिर सिर्फ़ बयालीस की उम्र में ही उसे लील भी गई ।
कौन भूल सकता है बीते जमाने की बहुत खूबसूरत हीरोइन विम्मी, मॉडल गीतांजलि शर्मा और सार्थक सिनेमा का पर्याय मशहूर अभिनेता ओम पुरी की नशे में मृत पाए जाने की अजीबोगरीब परिस्थितियों को। इन लोगों ने ख़ुद को शराब और ड्रग्स में बर्बाद कर दिया। सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद मीडिया के सामने हजारों ऐसे कलाकारों का खुलासा दिन-ब-दिन हो रहा है जो ड्रग्स के बिना खुद को कहीं पाते ही नहीं है।
काम न मिलने का तनाव , काम मिल जाने पर खुद को इंडस्ट्री के लायक बनाए रखने की जद्दोजहद में अधिकांश युवा नशे का दामन कसकर पकड़े हुए हैं।
अधिकतर मामलों में इस बुरी बला का हश्र “हरे रामा हरे कृष्णा” फिल्म में ड्रग एडिक्ट जेनिस बनी जीनत अमान की मौत की तरह ही होता है।
लेकिन संभावनाएं फिर भी बचती हैं, होना यह चाहिए कि इन भटके हुए लोगों को यदि अपने परिवार और समाज से सकारात्मक प्रोत्साहन मिल जाए तो वह भी “डैडी” फिल्म के गायक आनंद की तरह ही जिंदगी के स्टेज पर दुगने आत्मविश्वास के साथ लौट सकते हैं।
कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं जो नशे के दुष्प्रभाव से अछूता हो। खेल जगत में आए दिन खिलाड़ियों के इस मकड़जाल में फंसे होने की खबरें आती ही रहती हैं। महान फुटबॉल खिलाड़ी माराडोना भी अपने जीवन का एक दौर ड्रग्स में ख़राब कर देने की बात स्वीकार कर चुके हैं। किस-किसका जिक्र करें ! नशा किसीके लिए भी अच्छा नहीं , इसलिए “ग़ालिब छुटी शराब/ पर अब भी कभी-कभी पीता हूं रोज़े-अब्रो-शबे-माहताब में” .. के बहानों में उलझ कर देवदास बने रहने के बजाय तुरंत तौबा कर लें इस बला से, वरना ..
“बाबूजी ने कहा गांव छोड़ दो, सबने कहा पारो को छोड़ दो !
पारो ने कहा शराब छोड़ दो, आज तुम कह रही हो हवेली छोड़ दो !
एक दिन आएगा जब वो कहेंगे दुनिया छोड़ दो”..
जिंदगी का एकमात्र डायलॉग बनकर न रह जाये कहीं।