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प्रतिभा नैथानी की कलम से … अल्वी, ये मोजिजा़ है दिसंबर की धूप का शहर के सारे मकान धोये हुए से हैं…

सर्दियों में सबसे बड़ी खुशनसीबी है धूप का आना। लेकिन, अपने साथ-साथ यह जो आलस की चादर लेकर आती है ना, यही बन जाता है सबसे बड़ा रोना। एक बार धूप में बैठ गए तो फिर उठने का दिल नहीं करता। फिर यूं ही सोचते-सोचते कभी ऊंघते, कभी जागते शाम ढल जाती है और सारे काम भाड़ में चले जाते हैं।


वैसे दुख नहीं होना चाहिए इस बात का, क्योंकि इस बहाने हमारी हड्डियां मजबूत होती हैं। धूप से हमें विटामिन डी जो प्राप्त होता है। सिवा धूप के इसका कोई अन्य विकल्प भी तो नहीं। उसके अलावा इसकी कुदरती गर्मी में जो आनंद है वह रजाई, कंबल, हीटर या किसी और कृत्रिम साधन में कहां !
इसका उजाला अवसाद दूर भगाकर हमें खुश भी तो करता है। पेड़ से गिरते सूखे पत्तों का ढेर हो या कि गमले में खिलता कोई नया फूल, रस्सी पर सूखते रोजमर्रा के कपड़े हों या कि हाथ का बुना बरसों पुराना कोई नया सा कार्डिगन! खिली-खिली धूप की चमक से धुले-नहाये ये यह सब हमारी नजरों को भी ‘ईजी’ जैसी कोमलता से भर देते हैं। चटक धूप में सिंकती पीठ पर हल्की-हल्की हवा का मेल तो कभी-कभी दिसंबर में भी बसंत का एहसास कराने लगता है।
गर्मियों में जहां हम धूप में निकलते भी नहीं हैं तब भी हर रोज चेहरे पर फेसपैक या उबटन लगाना जरूरी समझते हैं, सनटैन का बहाना करके। लेकिन, सर्दियों में सनस्क्रीन नहीं भी लगाया है तो भी धूप से मुंह मोड़ने का जोखिम हम नहीं उठाते हैं। फिर भी एक बात तो है कि गर्मियों के निखरी-निखरी रंगत वाले ताजा चेहरे के मुकाबिल धूप से सुर्ख़ लाल हुए मुखड़े पर गुलाबी आलस के डोरे डली आंखों की बात ही कुछ और है। यह खुमारी मिल सकती है सिर्फ सूरज की धूप से, वह भी एकदम मुफ़्त-मुफ़्त-मुफ़्त!
बेक़द्री मगर इस नियामत की, कि ये बिखरी पड़ी है छत, आंगन, गलियों में, और हीटर सेंकते लोग ताक रहे हैं इसे ऑफिस की खिड़कियों से। इंसान ही नहीं कई जगह मौसम भी बेईमान है। घने कोहरे के आगोश से बाहर न निकल पाने को मजबूर धूप की याद में ही तड़प-तड़प कर गुजर जाती है सर्दियां कई बार।
बड़ियां, अचार, पापड़ या बाल सुखाने के बहाने धूप सेंकने के दिन जिनके लिए अब बीते जमाने की बात हुई, और
“अल्वी, ये मोजिजा़ है दिसंबर की धूप का
शहर के सारे मकान धोये हुए से हैं” ..
को महसूस किए बगैर ही दिसंबर बीत गया, नये साल की पहली जनवरी का सूरज धूप मलने आए उन सबके हाथों में।

प्रतिभा की कलम से

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