इज्जत से जीना एक नागरिक के लिए वर्तमान में सबसे बड़ी चुनौती: डॉ फारुख
-संयुक्त नागरिक संगठन व आरटीआई लोक सेवा के संयुक्त तत्वाधान में इंद्र रोड़ देहरादून में ‘स्वराज और सुशासन हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है, हम इसे लेकर रहेंगे’ विषय पर विचार गोष्ठी आयोजित की गई। बैठक के अध्यक्षता ब्रिगेडियर केजी बहल ने की। जबकि, मुख्य अतिथि डॉ एस फारुख रहे। गोष्ठी का शुभारंभ संयुक्त नागरिक संगठन के महासचिव सुशील कुमार त्यागी के स्वागत भाषण से हुआ। उन्होंने गोष्ठी के मंतव्य व आमंत्रित अतिथियों का परिचय सदन को कराया। त्यागी ने कहा कि संयुक्त नागरिक संगठन और आरटीआई लोक सेवा ने मिलकर कार्ययोजना बनाई है कि सुशासन के लिए नागरिक संगठनों को एक मंच पर लाने के प्रयास किए जाएं। इस क्रम में यह पहली गोष्ठी है। गोष्ठी में तय किया गया कि राष्ट्रीय आजादी दिवस पर गॉंधी पार्क में देश के शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाएगी और पांच सितम्बर को ‘सुशासन’ के पक्ष में जागरुकता रैली निकाली जाएगी।
शब्द रथ न्यूज, ब्यूरो (shabd rarh news)। संयुक्त नागरिक संगठन व आरटीआई लोक सेवा ने ‘स्वराज और सुशासन हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है, हम इसे लेकर रहेंगे’ विषय पर विचार गोष्ठी आयोजित की। गोष्ठी में मुख्य अतिथि डॉ एस. फारुख ने शायराना अंदाज में अपनी बात शुरू की,‘जो चाहे कीजिए, सजा तो है ही नहीं, जमाना सोच रहा है कानून तो है ही नहीं’। फारुख ने कहा कि आज एक नागरिक के सामने सबसे बड़ी चुनौती इज्जत से जी लेना ही बन गई है। ऐसा क्यों है कि आज देश में कोई भी कौम यह बात फख्र से नहीं कह पा रही है कि उनके समाज में दुल्हन जलाई नहीं जाती, प्रताड़ित नहीं की जाती हैं। उन्होने सवाल किया कि आज समाज यह बोलने में क्यूॅं कमजोर पड़ गया हे कि हमारे समाज में बलात्कार नहीं होते हैं। आज इतनी असहिष्णुता पैदा हो गई है कि सड़क पर छोटी सी टक्कर से मारपीट होने लगती है। सड़कों पर खुलेआम असंसदीय बोलचाल प्रयोग की जा रही है, यह सब समाज को पतन की ओर ले जा रही हैं। उन्होंने कहा कि जब देश के संविधान में सुशासन के सर्वबिन्दु दिए गए हैं तो फिर सुशासन देने में कहां दिक्कत आ रही है। हमें इस मुल्क को जवाबदेही मुल्क बनाना पड़ेगा। नागरिकों को सुशासन के पक्ष में खड़े होने के लिए उन्होंने अपने शायराना अंदाज मे आह्वान के साथ बस्ट समाप्त की,‘कुछ हम भी बनाएं तेरे बिगड़े काम, ए खाक-ए-वतन हिन्दुस्तान’।
गोष्ठी के आयोजन के लिए विचार पत्र आरटीआई लोक सेवा के अध्यक्ष मनोज ध्यानी ने पढ़ा। उन्होंने कहा कि भारत के संविधान में जिस लोकतांत्रिक व्यवस्था को निर्मित किया गया है, उसके मूल में नागरिकों को स्वराज प्रदत्त करने के साथ-साथ सुशासन प्रदत्त करना भी महत्त्वपूर्ण बिन्दु है। हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के केन्द्र में यूॅं तो अन्तिम आदमी ही सर्व शक्तिशाली है क्यूंकि वह अपने मत (Vote) के माध्यम से राष्ट्र का कानून निर्मित करने वालों को चुनता है। परंतु यह केवल सि(ांत मात्र ही है, क्यूंकि राष्ट्र के मतदाता के पास चुनने के बाद कोई व्यवस्था नहीं रहती है कि वह चुनने वालों पर निगरानी और नियंत्रण रख सकें। इस कमी को दृष्टिगत विकासवादी व्यवस्था में पारदर्शिता कानूनों सूचना का अधिकार अधिनियम को सृजित किया गया ताकी वह जागरुक बना रहे, गलत नीति निर्माण अथवा नियोजन होने पर आवाज उठा सके। परंतु दुर्भागयवश ऐसे कानूनों को भी लगातार कमजोर किये जाने के प्रयास हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि देश के प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम के जरिए ‘सुशासन’ पर बहस केंद्रित की है तो सभी नागरिकों का दायित्व बनता है कि वह इस पहल को सामने रखते हुए ‘सुशासन’ प्राप्त करने के लिए गोलबंद हो जाएं।
गोष्ठी में सुजाता पॉल ने कहा कि सुशासन की बात करना अपने आप में विरोधाभाषी बयान है। उन्होंने प्रश्न किया कि क्या इसका यह अर्थ हुआ कि प्रधानमंत्री मान रहे हैं कि अब तक कुशासन ही चलता रहा है। सुजाता ने कहा कि राष्ट्र के नागरिकों को सुशासन प्रदत्त कराना संपुर्ण राष्ट्र के नीतिकारों और नियंताओं की प्रथम जिम्मेदारी होनी चाहिए। लोकतंत्र के प्रत्येक स्तंभ को इसके लिए जवाबदेह बनाना चाहिए। नैनीताल उच्च न्यायलय के वरिष्ठ अधिवक्ता बीपी नौटियाल ने सदन से ऐसे प्रस्ताव पारित करने की मांग की, जिससे देश के भीतर संदेश जाए कि देश के नागरिक कुशासन को तिलांजली देने के लिए इक्टठे हो रहे हैं। नौटियाल ने कहा कि जब हम सुशासन की बात करते हैं तो यह तथ्य स्वीकार करते हैं कि कुशासन फैला हुआ है। कुशासन दूर करने के लिए नागरिकों द्वारा प्रारम्भ जन अभियान बड़े बदलाव के लिए जमीन तैयार कर सकते हैं।
डॉ मुकुल शर्मा ने कहा कि देश का नागरिक इतना सहमा हुआ है कि वह थाने का नाम सुनने मात्र से डर जाता है। उसके लिए सचिवालय, विधानसभा ऐसे नाम हैं, वह कभी पहुॅच ही नहीं सकता है। शासन के बंद दरवाजों को उनके लिए खुलवाना ही अपने आप में सुशासन प्राप्त करने का बड़ा कदम बन सकता है। समाजसेवी दिनेश भंडारी ने कहा कि हमारी व्यवस्था में शक्ति का केन्द्र वह हैं जो या तो चुनकर (Elected) अथवा चयनित (Selected) होकर आते हैं। दोनों की जवाबदेही की सुनिश्चतता सुशासन के लिए मार्ग प्रशस्त करेंगे। इस विषय पर हमें अपनी मांग आगे बढ़ानी चाहिए।
कर्नल (से.नि) बीडी गम्भीर ने कहा कि सुशासन के पक्ष में देश के प्रधानमंत्री ने जो आह्वान राष्ट्र के नागरिकों से किया है, उसमें हम सबको उन्हें ताकत प्रदान करनी चाहिए।
सामाजिक सरोकारों से जुड़े सरदार जेएस जस्सल ने कहा कि जब सरकार अपने दायित्व निर्वहन में व्यक्तिगत स्वार्थ (Personal Interest) आते हैं तो कुशासन बनने लगता है। सरकार चलाने वालों को यह सिखाने की जरुरत है कि वह व्यवस्था संविधान अनुरुप संचालित करें न कि अपने व्यक्तिगत स्वार्थ पूर्ति हेतु इसको तोड़े-मरोड़े। देश के नागरिकों को ऐसा सुशासन मिलना चाहिए कि उसका सिर फख्र से ऊॅंचा रहे, नागरिक सम्मान बना रहे। सेवानिवृत्त मे. जनरल केडी सिंह ने कहा कि People get the government they deserve. लोग जैसी सरकार चाहेंगे उन्हें वैसी ही सरकार मिलेगी। इसके लिए जरुरी है कि नागरिक चौकस बनें और अच्छी सरकार के लिए लाम हों। उन्होंने कहा कि विविध हमारी बड़ी शक्ति है, परंतु यदि इसका प्रयोग विभाजन व मतभेद पैदा करने के लिए किया जाए तो यह हमारी सबसे बड़ी कमजोरी भी बन जाती है। हमें सर्व नागरिकों में राष्ट्रय भावना (National Pride) को जगाने के लि कार्य करना चाहिए। सुशासन के लिए उन्होंने नौकरशाही के Mindset को बदलने की बात कही।
सेवानिवृत्त आईएएस (IAS) रवि प्रकाश सगोड़ा ने कहा कि देश की जनता के बीच सुशासन प्राप्त करने के लिए जो रोष है वह वाजिब है। सुशासन के लिए पहला कदम है पारदर्शिता लाना और Corruption को खत्म करना। भ्रष्टाचार की वास्तविक जननी कुर्सी की ताकत है। एक बाबू, बैंक क्लर्क, रेलवे का टीसी (Ticket Checker), थानेदार, कस्टम अधिकारी, सेना में Supply Incharge करने वाला या स्टोर कीपर, नौकरशाह, मंत्री सभी कैसे भ्रष्ट व्यवहार में संलिप्त हो जाते हैं। यह कुर्सी की धमक से अधिक कुछ नहीं है। उन्होंने कहा कि सबसे पहले हमें इस मानसिकता को बदलने के लिए प्रयास करने होंगे कि कोइ् कुर्सी पाकर ताकतवर है और कोई कुर्सी के बैगर लाचार। उन्होंने कहा कि सुशासन के स्पष्ट मापदंड बनने चाहिए कि राशन की दुकान में वाजिब दाम पर उत्तम किस्म का पूरा राशन मिले, मजदूर को बिना काट-छांट के धियाड़ी मिले, बिजली का बिल सही हों और पूर्ण बिजली सस्ते दर पर मिले, अस्पताल में डाक्टर, नर्स व ईलाज का पूरा प्रबंध हो, हर प्रकार की दवाएं वहॉ उपलब्ध हों, स्कूल में किताब और मास्टर दोनों हों, पड़ने की सुचारु व्यवस्था हो, प्रत्येक रेल व बस सेवा टाईम पर चलें, तहसील और कोर्ट कचहरी में क्ंजम पर क्ंजम न लगती रहैं आदि, तभी सुशासन आ सकता है। उन्होंने व्यापक चुनाव सधारों की जरुरत पर भी बल दिया।
ले कर्नल बीएम थापा ने कहा कि अगर हम भ्रष्टाचार पर हमला बोलें और उसे खत्म कर दें तो सुशासन आ जाएगा। इसलिए आवश्यक हे कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए कड़े मापदंड बनें। उन्होंने देहरादून नगर निगम द्वारा भ्वनेम ज्ंग को 40 प्रतिशत बढ़ाने पर कहा कि पहले नागकि सहमति बने तब ही टैक्स बढ़ने चाहिए। ऐसा करने से पहले नागरिकों को पूर्ण नागरिक सुविधाएं जैसे कि अच्छी सड़कें, पथ प्रकाश व्यवस्था, अतिक्रमण रहित मार्ग और बाजार, सुव्यवस्थित पार्किंग सुविधाएं मुहैया करवानी चाहिए अन्यथा नागरिक भला किस लिए टैक्स का बोझ अपने सिर पर लें।
बैठक की अध्यक्षता व समापन भाषण में ब्रिगेडियर केजी बहल ने कहा कि हमें इस बात के लिए प्रयास करने होंगे कि देश के Constitution को पूर्णतः अमल में लाया जाए। हमारी कोशिश होनी चाहिए कि पारदर्शिता (Transparency) की मांग को ठोस रुप में सर्वत्र रुपांत्रित किया जाए। हम इस बात को देखें कि जो कोई भी अपनी सेवा (Duty) में कमी करता मिले, वह दण्डित हो और हम सब देश के प्रति सच्ची निष्ठा के साथ खड़ रहें। गोष्ठी में तय किया गया कि राष्ट्रीय आजादी दिवस पर गॉंधी पार्क में देश के शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाएगी और पांच सितम्बर को ‘सुशासन’ के पक्ष में जागरुकता रैली निकाली जाएगी।
गोष्ठी में ब्रिगेडियर केजी बहल, मुख्य अतिथि डॉ एस फारुख, संयुक्त नागरिक संगठन के महासचिव सुशील कुमार त्यागी, आरटीआई लोक सेवा के अध्यक्ष मनोज ध्यानी, समाजसेविका/पत्रकार सुजाता पॉल, मनोवैज्ञानिक डॉ मुकुल शर्मा, ले कर्नल बीएम थापा, सेवानिवृत्त आईएएस (IAS) रवि प्रकाश सगोड़ा, मे.जनरल (से.नि) केडी सिंह, कर्नल (से.नि) बीडी गम्भीर, सरदार जेएस जस्सल, राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के हाजी सलीम अहमद, दिनेश भंडारी, नैनीताल उच्च न्यायलय के वरिष्ठ अधिवक्ता बीपी नौटियाल, युवा समाजसेवी सुशील सैनी, रोहित कोचगव, नरेन्द्र थापा, आरके बख्शी आदि मौजूद थे।