सरहदें न होती, कितना अच्छा होता…सोचो अग़र ये, सरहदें न होती…
चंदेल साहिब
कवि/शाइर/लेखक
हिमाचल प्रदेश
————————————
सरहदें न होती,
कितना अच्छा होता।
सोचो अग़र ये,
सरहदें न होती।
सरहदें न होती,
तो क्या होता।
न कोई झगड़ा,
न फ़साद होता।
एक सी होती,
अपनी ये धरती।
सभी जगह होता,
एक सा आसमाँ।
न कोई होता,
अपना व पराया।
न किसी बात,
का डर होता।
न खेलते हम,
ख़ून की होली।
न कहीं आग,
की होती दिवाली।
न कोई राम,
न रहीम होता।
सब का मालिक,
बस एक होता।
न कोई बेटा,
क़भी शहीद होता।
न कोई परिवार,
क़भी अनाथ होता।
नदियों की धारा,
बहती ही रहतीं।
क़भी कहीं कोई,
मोड़ न पाती।
पिंजरे के सब,
पँछी भी कहते।
सरहदें न होती,
कितना अच्छा होता।