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सरहदें न होती, कितना अच्छा होता…सोचो अग़र ये, सरहदें न होती…

चंदेल साहिब
कवि/शाइर/लेखक
हिमाचल प्रदेश
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सरहदें न होती,
कितना अच्छा होता।
सोचो अग़र ये,
सरहदें न होती।

सरहदें न होती,
तो क्या होता।
न कोई झगड़ा,
न फ़साद होता।

एक सी होती,
अपनी ये धरती।
सभी जगह होता,
एक सा आसमाँ।

न कोई होता,
अपना व पराया।
न किसी बात,
का डर होता।

न खेलते हम,
ख़ून की होली।
न कहीं आग,
की होती दिवाली।

न कोई राम,
न रहीम होता।
सब का मालिक,
बस एक होता।

न कोई बेटा,
क़भी शहीद होता।
न कोई परिवार,
क़भी अनाथ होता।

नदियों की धारा,
बहती ही रहतीं।
क़भी कहीं कोई,
मोड़ न पाती।

पिंजरे के सब,
पँछी भी कहते।
सरहदें न होती,
कितना अच्छा होता।

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