कवि सतीश बंसल की एक रचना… रियाया जुल्मतें सहती नही है देर तक
सतीश बंसल
देहरादून, उत्तराखंड
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रियाया जुल्मतें सहती नही है देर तक
हुकूमत जुल्म की चलती नही है देर तक
किरण जब भोर का ऐलान करती है सुनो
जहां में तीरगी टिकती नही है देर तक
अनैतिक कायदे ये आधुनिक हथियार सब
बने हैं जो तुम्हारे तख़्त के आधार सब
रियाया जिस घड़ी होगी बग़ावत पर खड़ी
धरे रह जाएंगे ये देखना बेकार सब
धरम के नाम ये जो भी दिखावा है सुनो
रियाया जानती है बस छलावा है सुनो
किसी भी धर्म की शिक्षा नही वो क्रूरता
मियाँ जो आप शैतानों का दावा है सुनो
गिरी है सोच जिनकी उन गिरों को क्या कहें
अजी शैतानियत के वंशजों को क्या कहें
बताने पर तुले हैं धर्म वे जो जुल्म को
पढ़े लिक्खें करोड़ों जाहिलों को क्या कहें