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तारा पाठक…. सातूं-आठूं कुमाऊनी लोक पर्व और गीत

झोड़ा खेलते हुए महिलाएं

तारा पाठक
हल्द्वानी, उत्तराखंड


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गमरा या सातूं आठूं लोक पर्व कुमाऊ क्षेत्राक् पर्वतीय इलाकों में भौत धूमधामैल मनाई जां ।भदौ म्हैणा शुक्ल पक्षै पंचमी दिन बटी यै शुरुवात है जें।जैधें बिरुड़ पंचमि कूनी।बिरुड़ पंचमी दिन घरा जनानी बर्त धरनी,रत्तै ब्याण नै-ध्वे बेर, भितेर लिपि-घेंसि, द्याप्त थान में दि जलै बेर पाँच या सात साबुत अनाज(घौत, गुरूंस,चाण,कयों,रैंस,ग्यूं,मास)तामै तौलि में भिजै दिनी। एक कुटुरि में काच हल्द, सुपारि,डबल,दुब बादि बेर तौलि में धरि दिनी। गौं बाखइ में एक घर में सामूहिक पुजि हैं।उ घर में बर्ती जनानी लिपि-घेंसि बेर ऐपण दि जानी।स्यूनि -सिंगार करि,रंग्वाली पिछौड़ पैरि बेर सबै जनानी यां एकट्ठ हुनी और पंडित ज्यू द्वारा पुज कराई जें।पुज है जाण पर एक आम बिण भाटै काथ सुणै और सुणनी जनानी बीच -बीच में एक्केक गुद बिरुड़क भगवानन चढ़ूनी ,होइ है (हुङुर दिनी) कै बेर काथ कें गति दिनी।

तामे की तौली और बिरुड़ भिगाए हैं।

बिण भाटै काथ-एक बिण भाट भाय। खूब खान पिन परवार भय।उनार सात च्याल-सात ब्वारी भाय के करछा पै अघिल कै कैकी आन औलाद नि भै बल।

होइ है।
एक दिन बिण भाटै घरवाइल बिण भाट ज्यू धें कय-जावौ ,पंडित ज्यू कें कुनइ-मुनइ देखावौ।कसी भल बाट हुं के त बताल।
बिण भाट ज्यू ग्याय पंडित ज्यू पास।कुनइ देखी उनूंल कौ मुस्किल छ जजमान।
बिण भाट ज्यूल दुःखी है बेर कौ-पंडित ज्यू के त बिधि-विधान होल,के उपाय बतावौ।
पंडित ज्यूल पोथि-पताड़ खोल पै ।पन्न वरकाय-फरकाय।पै बुलाणी-जजमानौ यस करौ-भदौ म्हेंणैं शुक्ल पंचमी दिन सबै ब्वारी नै-ध्वे बेर ,मंदिर में दि जलै बेर,बिना मुख बिटाइयै पाँच-सात साबुत अनाजों कें एक तामै तौलि में भिजाल और सप्तमि -अष्टमि में गौरा-महेशै पुज करि बेर यो अनाज चढ़ाल और सबै ब्वारियों कें परसाद खाण हुं दिया। भल बाट है जाल बल।
होई है।
बिण भाट ज्यूल घर ऐबेर आपणि घरवाइ कें यो बर्तै बिधि बतै बल।
होइ है।
सासुल ठुलि ब्वारि धें कय -ब्वारी -ब्वारि रत्तै ब्याण उठि बेर धार जै नै-ध्वे अए।बिना मूख बिटाइयै भितेर लिपि -घेंसि, मंदिर में दि जलए,फिर पाँच-सातअनाजों कें तामें तौलि में भिजए बल।
होइ है।

गौरा महेश्वर

ठुलि ब्वारिल नै -ध्वे सकौ जस्सै घर आई वील एक गुद बिरुड़क मुख में खिदि दी बल।
होइ है।
सासुल कय ब्वारी त्यार पावणी नरगै में रै जौ बल।
होइ है।
सासुल दुहरि ब्वारि कें लै यसै बताय,वील लै आखिरकार मूख बिटाइ दी बल ।
होइ है ।
सासुल तिहरि-चौथि-पँचूं-छटूं ब्वारि कें बारि -बारी समझाय।सबूंलै मूख बिटाइ दी बल।
होइ है।
सासुल पै आखिर में सतूं ब्वारि जो कि गरीबै चिहड़ि भै,खेड़हलूं बणाई भै उकैं ढुणो, उ गोर बाछों छान में गुबर स्वेरणैछि बल।
होइ है।
सासुल कय -ब्वारी ब्वारि आ घर आ ,ना -ध्वे ,लिप घेंस,द्याप्ता थान में दि जलै बेर पाँच या सात साबुत अनाजों कें एक तामै तौलि में भिजा बल।
होइ है।
उ गरीबै चेलि भै ,कभैं उहूं क्वे भली बलानेर नि भय ।उ अफुली बेर घर ऐ।सासुल जस कय वील उसै करौ।बिरुड़ भिजूण बखत वी जिबड़ि लै चुवमुवाणें छी । वील आपणि जिबड़ि में डाम धरि दी लेकिन बिरुड़ नि जुठ्याय। वी सासुल खूब अशीष दे बल।
होइ है।
देखन -चानें नऊं म्हैण वी भौ हैगोय बल ।
होइ है।
सौती राग भय ।उ ब्वारि धें सबोंल कौ जा त्यार बाब बेमार है रीं भेटि आ।भौ हम चांल बल।
होइ है।
ब्वारि मैत गेई बाब छावै भाय।इजैल कौ-चेली यो सातूं -आठूं पुज आपण घर में करनी।त्यार सरासीनैंल के रचि राखौ,कस रचि राखौ।तु आपण घर जा कौछी बल।
होइ है।
वां सौतोंल वी भौ बइ पाणी धार में दि दी बल।
होइ है।
जब भौ मै मैत बटी आई ,भौ दूद प्यल कै धार धें वील आपण आङ ध्वे।
जसै आङ ध्वैणैछी।वी भौ दूद पर लागि गोय बल ।
होइ है।
जसिकै ब्वारी भौ सकुशल बचि गोछी,एसिकै सबों औलाद बचि रौ बल ।
होइ है।

सप्तमि या सातूं दिन फिर वी घर में सब जनानी एकबटीनी।नौव-धारों में दगड़ै जैबेर बिरुड़ लै ध्वे ल्यूनी।चेली -बेटी गाड़न बटी पौसी नाज जसी कि धान-कौंणि और कुकुड़ि-माकुड़ी पेड़ ल्यूनी।बर्ती जनानी आपण-आपण पुजै थाइ में बिरुड़ वालि कुटुरि लै ल्यूनी।कुकड़ि-माकुड़ि पर यो गीत लै छ-
ल्यावौ चेलियो कुकुडी़ का फूल,ल्यावौ चेलियो माकुडी़ का फूल।

ल्यावौ सुभद्रा देही कुकुडी़ का फूल ,ल्यावौ अन्नपूर्णा देही माकुडी़ का फूल।

फूल नि मिलना पाति चुनी ल्यावौ ,पाति नि मिलनी बोट चुनी ल्यावौ ,बोट नि मिलना जड़ खोदी ल्यावौ,जड़ नि मिलना माट खोदी ल्यावौ।

ल्यावौ चेलियो कुकुडी़ का फूल,ल्यावौ चेलियो माकुडी़ का फूल।

ल्यावौ(सबै पुज पुज करणियों घरा चेलियों नाम बारि- बारी ठुल बटी नाना क्रम में।) देही कुकुडी़ का फूल,माकुडी़ का फूल।

फूल नि मिलना पाति चुनी ल्यावौ,पाति नी मिलनी बोट चुनी ल्यावौ,बोट नि मिलना जड़ खोदी ल्यावौ,जड़ नि मिलना माटी खोदी ल्यावौ।

ल्यावौ चेलियो कुकुडी़ का फूल ,ल्यावौ चेलियो माकुडी़ का फूल।

(सातूं आठूं पुज में कुकुडि़ माकुडी़ फूलों एतु महत्व छ कि घरा सयाण मैंस चेलि बेटियों धैं कूंनी -कुकुडि़ माकुडी़ फूल लि अया,फूल नि मिलला पातै सही,पात झडि़ गो हुन्याला डंठवै लि अया,डंठव गइ गो हुन्याला जड़ खोदि ल्याया,जड़ लै गइ गो हुन्याला जै जाग कुकुडि़ माकुडी़ बोट छी वी जागौ माट तबलै खोदि ल्यया।)

फिर पौसी नाजैल सयाण आम लोग गौरा बणूनी और छजै बेर एक छापरि में मंदिर में थापि दिनी। यो गीत-

जुवा दावा खेल गुसैं हो,कूकूडी़ की पूजा गुसैं हो,माकूडी़ की पूजा गुसैं हो।

भैर त रामी चँद्र ,लछीमण जुवा दावा खेल गुसैं हो।

भितेर सीता देही,बहूराणी कूकूडी़ की पूजा गुसैं हो,माकूडी़ की पूजा गुसैं हो।

भैर त (पुज में आई सबों कै परवारा बैगों च्यालों नाम)जुवा दावा खेल गुसैं हो।

भितेर (पुज में आई सुहागिलियों नाम-सुंदरी,मंजरी ,खंजरी)कूकूडी़ की पूजा गुसैं हो ,माकूडी़ की पूजा गुसैं हो।

(सातूं बर्त में यो गीत गाई जां,यो गीत में उच्चरित कुकुडि़ -माकुडि़ (गौरा महेश)पुज हैं।
पैंल जबान में जब चौंसर या जु खेलणक् चलन छी तत्कालीन परिदृश्य कैं दर्शै राखौ।
भैर आंगण में घरा बैग चौंसर खेलणी (उ टैम में मनोरंजना सीमित साधन छी)और भितेर सुहागिली गौरा महेशै पुज करणी।)
ये गीत छ-
यो भुक भदौ गंवरा के ऐ रै छै मैत।

जेठ ऊनी त उमी खै जानी ,कार्तिक ऊनी त च्यूड़ खै जानी।यो भुक भदौ गंवरा के ऐ रै छै मैत।

मैं त आयूं इजा वे चुनरी ल्ही जाण,दी हाल इजा वे चुनरी को शाल।

चुनरी त तेरी बोजी क् दैज ।

वी धैं मांग गंवरा चुनरी को शाल।

दी हाल बोज्यू वे ,चुनरी को शाल।

यो चुनरी त मेरी मैत बै आई ,नि दिन ननदी चुनरी को शाल।

तुमन बोज्यू वे चेलियै चेली होला।

गाइन तुमारा बहौडै़ बहौड़ होला।

भैंसिन तुमारा काटै काट होला।

लछुलि बीराई ढडु़वै ढडू़ होला।

खेतन तुमारा झडुवै झडू होला।

दी हाल बोज्यू वे चुनरी को शाल।

लिजा ननदी चुनरी को शाल।

तुमन बोज्यू वे च्यालै च्याल होला।

गाइन तुमारा बाछी बाछी होला।

भैंसिन तुमारा थोरी थोरी होला।

लछुलि बीराई प्वाथै प्वाथ होला।

खेतन तुमारा साल जमाई।

घर जानी गौरा देली अशीष ।

तुम बोज्यू वे आइवान्ती रया,सोहाग तुमार लाख बरीष।

(गमारै पुज में दुहार दिन( आठूं)यो गीत नंद बोजी संवाद स्वरूप गाई जां।नंद बोजि धैं पिछौड़ मांगैं,बोजि कैं -यो पिछौड़ म्यार मैत बटी आई छ ,मैं नि दिन्यूं।तब नंद फिटकार दि बैठैं कि तुमार चेलियै चेली ह्वाल(पैंल जबान में च्यल हुंण सबसे ठुल सौभाग्य मानी जांछी)गोरू बहौडी़ ह्वाल,भैंसों काटै काट ह्वाल—–।
फिर बोजि नंद कैं मनैं -तु ल्हिजा यो पिछौड़।नंद अफुली जैं और खूब अशीष द्यैं ।घर जानी गौरा देली अशीष -मतलब गौरा माता सातूं आठूं में आपण मैत ऐ रैं ।
पुज में डोरै प्रतिष्ठा हैं।यो प्रतिष्ठित डोर कें बर्ती जनानी बौं फांङुण में पैरनी और रोज रत्तै पर नै-ध्वे बेर डोरक् मंत्र पढ़ि बेर जल चढ़ूनी।
डोरक् यो गीत छ-

गड़ौ गुसैं महेसर हार रे डोर।
काली होली गौरा राणी
के छाजल हार रे डोर।

काला होला गणपति बाला
गोदी झन धरिया।

काली होली धरती माता पाऊँ छन धरिया।

काली होली गंगा मइया नान झन करिया।

काली होली सरगुलि माता ढीठ झन करिया।

पैरौ तुम गौरा राणी हार रे डोर।

(माता गौरा भगवान महेश धें आपूं हुं डोर गठ्यै माङै लेकिन भगवान उनन चिढ़ून हुं कूनी –
गौरा राणि कालि छ ,डोर के छाजल।
गौरा माता कें रिसै बेर कूनी- तुमरि औलाद कालि होली के काखि में नि बैठाला।
धरती कालि होली खुट नि धरला,
गंगा कालि होली नाला नैं,
अगास काल होलो के डीठ नि पाड़ला ।
तब उनन मनूण हुं भगवान महेश कूनी -मैं डोर गठ्यूं ,गौरा राणी तुम पैरौ।)

अषटमी या आठूं दिन फिर बर्त हुं।
यै दिन फिर से चेली बेटी पौसी नाज और कुकुड़ि-माकुड़ी पेड़ ल्यूनी।
ए दिन महेसर बणाई जानी।माता गौरा कै ढीक में महेसर थापी जानी।
माता गौरा बिना बताइये मैत ऐपड़ी।तब भगवान महेश उनन ल्हि जाण हुं आईं ।इनार दगाड़ गणपति बाला लै थापी जानी।बर्ती जनानी बारि-बारी इनन झुलूनी और यो गीत गानी-
झूलो री बावा होलो री।

अष्टमी दिन दुबड़ौ बर्त हुं ,प्रतिष्ठा बाद दुब और धागौ बणी दुबड़ गाव में पैरनी।खूब नाच गीत हुनी।
यै अलावा यो गीत लै गानी-

सात पाँचै बैंणियों में को जै होली जेठी ।
कुकुडि़ कैं छौ वे मैं जै हूंलो जेठी,माकुडि़ कैंछौ वे मैं जै हूंलो जेठी।

तुमन त कुकुडी़ चुनी चानी देला ,तुमन त माकुडी़ चुनी चानी देला।सात पाँचै बैंणियों में को जै होली जेठी।

हर्याइ कैं छौ वे मैं जै हूंलो जेठी।

तुमन त हर्याई काटी कुटी देला, सात पाँचै बैंणियों में को जै होली जेठी।

च्यूडि़ कैं छौ वे मैं जै हूंलो जेठी।

तुमन त च्यूडी़ वे कूटी काटी देला, सात पाँचै बैंणियों में को जै होली जेठी।

बिरुडि़ कैंछौ वे मैं जै हूंलो जेठी।

तुमन त बिरूडी़ भुटी भाटी देला ,सात पाँचै बैंणियों में को जै होली जेठी।

दुबि कैंछौ वे मैं जै हूंलो जेठी,तुमन त दुबि वे ख्वार में धरूंला, तुम त दुबि वे जज्ञशाला जाला।

सात पाँचै बैंणियों में दुबि होली जेठी।

(गमारै पुज में आठूं पर्ब में यो गीत गाई जां,हमार लोक पर्ब कएक विधिनैंल मनाई जानी,बिरुड़ लै ख्वार में धरनी,च्यूड़ लै ख्वार में धरनी ,हर्याव लै ख्वार में धरनी ,लेकिन जब श्रेष्ठता बात ऐं त दुब कैं सबों में ठुल मानी गो।दुब ल्हिबेर होम यज्ञ हुनी,दुब सदा हरी भरी रूं,अशीष में कूंनी लै तेरि दुबै जै जड़ हैजौ।)
आठूं दिन उनरि बिदाइ हैं, हमार कुमाऊ-गढ़वाल में यो बड़ भावुक दृश्य हुं जब आठूं दिन गौरा माता सरास हुं जानी भगवान महेश दगाड़। जसी चेली जाण में निश्वास लागं उसी कै इनरि बिदाइ में लै सबों आँखन में पाणि भरी ऊं।इनूं कैं क्वे आपणि चेलि बेटि कूंनी,क्वे नंद क् रिश्त लगै बेर बिदा करनी।)
नौव -धारन में इनन विसर्जित करी जां।पुज में धरी फल-फूलन एक ठुल्लो चद्दर में धरि बेर उछालनी ,जैधें फल फटकण कूनी।सबै आपण-आपण आँचल छोड़नी। आँचल मै आई फल और बिरुड़ कें ख्वार में धरनी।दुहार दिन तौलि वाल बिरुड़ छौंकि बेर खानी।पिथौरागढ़ में सातूं-आठूं पर्व खूब धूम-धामैल मनाई जां।स्यैणीं-बैग गोल घ्यार में झ्वाड़-चांचरि खेलनी जैधें ठुल खेल कूनी।
खेति-पाती कामा बीच यो लोकपर्व नई उल्लास ल्हि बेर ऊं।और जिंदगी में उमंग भरि जां।साल में एक बार सही सबन मिलि -जुलि बेर रूणैं सीख दि जां।

जै गौरा-महेश

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