विधायक कृष्णानंद राय की हत्या में हाई कोर्ट में जाएगी UP सरकार
भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के मामले में विधायक मुख्तार अंसारी समेत सभी आरोपितों को सीबीआइ की विशेष अदालत से बरी किये जाने का सीएम योगी आदित्यनाथ ने संज्ञान लिया है।
लखनऊ, भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के मामले में विधायक मुख्तार अंसारी समेत सभी आरोपितों को सीबीआइ की विशेष अदालत से बरी किये जाने का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने संज्ञान लिया है। सरकार इस फैसले का परीक्षण कराएगी और हाई कोर्ट में अपील करेगी। सीबीआइ की विशेष अदालत से आरोपितों को बरी किये जाने पर जांच एजेंसी से लेकर पैरोकारों की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं।
गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद क्षेत्र के भाजपा विधायक कृष्णानंद राय और उनके सरकारी अंगरक्षक समेत आधा दर्जन समर्थकों की 29 नवंबर, 2005 को गोलियों से हत्या कर दी गई थी। इस मामले में विधायक मुख्तार अंसारी, सांसद अफजाल अंसारी, जेल में मारे गए माफिया मुन्ना बजरंगी समेत 17-18 लोग आरोपित थे। करीब डेढ़ दशक बाद दिल्ली की विशेष सीबीआइ अदालत के फैसले ने इस पर नई बहस शुरू कर दी।
विधायक की हत्या के बाद मौजूदा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वाराणसी पहुंचकर अनशन किया था। तब वाराणसी से लखनऊ तक न्याय यात्रा निकाली गई, जिसको पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने हरी झंडी दिखाई थी।
पूर्वी उत्तर प्रदेश के इस बहुचर्चित हत्याकांड को लेकर भाजपा ने लगातार आंदोलन किया। अब केंद्र व प्रदेश में भाजपा की सरकार रहने के बावजूद इस मामले के आरोपितों के बरी होने से लचर पैरवी के आरोप लग रहे हैं। मुख्यमंत्री मामले में गंभीरता दिखा यह संदेश भी देना चाहते हैं कि वह पीड़ित परिवार को न्याय दिलाएंगे और संघर्षरत रहे भाजपा कार्यकर्ताओं की भावनाओं को भी संबल प्रदान करेंगे।
दरअसल, सोशल मीडिया से लेकर चौतरफा यह बात उठ रही है कि जांच एजेंसी ने साक्ष्य जुटाने और पैरवी करने में चूक कर दी। भले ही बहुत से गवाह गवाही से मुकर गए, लेकिन परिस्थितिजन्य साक्ष्य भी ठीक से प्रस्तुत नहीं किये गए। वरना उनसे सजा दिलाने में मदद मिली होती। इसके लिए तर्क यही है कि 2004 में पुलिस उपाधीक्षक शैलेंद्र सिंह ने सेना के भगोड़े से एक शस्त्र बरामद किया था।
सूत्रों का कहना है कि शासन की अनुमति से आरोपित विधायक और सेना के भगोड़े की बातचीत टेप की गई थी। उसमें यह बात साफ थी कि कृष्णानंद की हत्या के लिए हथियार खरीदा गया। शैलेंद्र ने मुख्तार पर शिकंजा कसा, लेकिन तत्कालीन सरकार ने उन पर ही अंकुश लगा दिया जिससे क्षुब्ध होकर शैलेंद्र ने पुलिस की नौकरी से इस्तीफा दे दिया।