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वीरेन डंगवाल ने गढ़ी अपनी भाषा, जयंती पर आधारशिला ने किया याद

हल्द्वानी। वीरेन डंगवाल नये अंदाज के कवि थे। उन्होंने हिन्दी कविता का नया मुहावरा गढ़ा। वरिष्ठ साहित्यकार हेतु भारद्वाज ने यह बात वीरेन डंगवाल की जयंती पर आयोजित वेबीनार में कही। उन्होंने कहा कि वीरेन ने जन सामान्य के जीवन की साधारण स्थितियों को असाधारण बनाने के लिए अपनी भाषा गढ़ी। कविता के साथ ही हिन्दी पत्रकारिता में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिसे हमेशा याद किया जाएगा।
‘आधारशिला’ ने हिन्दी के चर्चित कवि व संपादक वीरेन डंगवाल की 73वीं जयन्ती पर उन्हें याद किया। जयंती पर वेबीनार आयोजित कर उनकी कविताओं पर चर्चा की गई। वरिष्ठ साहित्यकार प्रो लक्ष्मण सिंह बटरोही ने कहा कि वीरेन की उनके मन-मस्तिष्क में एक कवि से अधिक आत्मीय दोस्त की छवि है। वीरेन में कवि या साहित्यकार का गुरुडम नहीं था। उन्होंने जैसे समाज को देखा उसी रूप में अपनी कविताओं में उसे व्यक्त किया। वह जिंदगी व कविता के बीच फासला नहीं रखते थे। भावनाओं को सीधे व्यक्त करना वीरेन का बड़ा गुण रहा। कार्यक्रम का संचालन करते हुए ‘आधारशिला’ के प्रधान संपादक व लेखक-पत्रकार दिवाकर भट्ट ने कहा कि प्रो वीरेन डंगवाल ने हिन्दी कविता की श्रीवृद्धि में अप्रतिम योगदान दिया। उनकी कविताएं अलग मिजाज की आमजन की विशिष्ट अभिव्यक्ति हैं। हिन्दी पत्रकारिता में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। पत्रकारों की एक पूरी पीढ़ी वीरेन दा के सानिध्य में रहकर पत्रकारिता में कुशल हुई। वह लोग देश के विभिन्न समाचार पत्रों व चैनलों में प्रमुख पदों तक पहुंचे। वरिष्ठ पत्रकार दिनेश जुयाल ने कहा कि वीरेन दा प्रतिबद्ध कवि थे। लेकिन, पत्रकारिता के रूप में उनके सामने पूरी दुनिया थी। उन्होंने हिन्दी पत्रकारिता को समग्रता से देखा और उसी के रूप में उसका प्रस्तुतीकरण किया, यह बात उनके साथ पत्रकारिता करने वालों ने उनसे सीखी। वरिष्ठ पत्रकार प्रभात सिंह ने कहा कि हमारी पीढ़ी के पत्रकारों ने वीरेन दा के साथ रहकर ही पत्रकारिता सीखी। वह सहकर्मियों को बड़ी आत्मीयता के साथ जिंदगी की तमीज़ सिखाते थे। वरिष्ठ साहित्यकार प्रो वाचस्पति ने कहा कि वीरेन डंगवाल हिन्दी के वह कवि हैं, जिन्होंने अपनी कविताओं में नगण्य चीजों को महत्व दिया और उसे कविता का विषय बनाकर अत्यंत महत्वपूर्ण बना दिया। वह आमजन के विशिष्ट कवि हैं। वीरेन की कविताओं के साथ उनका गद्य भी ध्यान खींचता है। इस अवसर पर उनकी कविताओं का पाठ भी किया गया। ‘आएंगे उजले दिन आयेंगे…’।

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