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कवि/गीतकार वीरेन्द्र डंगवाल “पार्थ” का राधा-कृष्ण के प्रेम को समर्पित एक छंद

वीरेन्द्र डंगवाल “पार्थ”
देहरादून, उत्तराखंड

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राधा रानी नयनों से बोलतीं है प्रीत जब
मोहन सम्मोहन में चित्त हार जाते हैं

मुग्ध हो के विचरण होता प्रीत गलियों में
नेह का असीम तब द्वार बन जाते है

मोहक सी चितवन खिल उठा मधुवन
मन की वीणा के वो तो तार बन जाते हैं

रास के वो रचियता, गोपियों के प्रिय सखा
राधिका के श्यामल जी सार बन जाते हैं

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