झलकारी बाई… वीरता की मिशाल… सम्मान में जारी हुआ था डाक टिकिट
कभी-कभी जिदंगी यूं ही बेकार चली जाती है, लेकिन साल का कोई भी दिन ऐसा नहीं होता है जब वो किसी भी महान घटना से जुड़ा हुआ न हो ।
२२ नवंबर पर याद करते हैं एक महान वीरांगना को। नाम था – ‘झलकारी देवी’। जहां हिन्दुस्तान में वीरता की पर्याय झांसी की रानी ‘लक्ष्मी बाई’ के नाम से कोई अन्जान नहीं , वहीं उनकी हमशक्ल झलकारी बाई से शायद बहुत कम लोग ही परिचित होंगे। झलकारी बाई दलित समाज कोली जाति से ताल्लुक रखतीं थीं। लेकिन वीरों की अपनी कोई जात नहीं होती शायद। वह देश पर मर-मिटने के लिए ही पैदा होते हैं । झांसी की रानी के एक विश्वासपात्र गद्दार दूल्हेराव ने जब अंग्रेजों की सेना के लिए किले का एक विशेष द्वार खोल दिया तो उनसे मुठभेड़ में झलकारी देवी का वीर सैनिक पति पूरन कोली शहीद हुआ। लेकिन अपनी दुनिया उजड़ने की परवाह न करते हुए झलकारी देवी ने रानी का बीर बाना पहना और अंग्रेजो को अपने रानी होने के भ्रम में भरमाते हुए बहादुरी से युद्ध लड़ने लगीं। इधर रानी कुछ सैनिकों के साथ किले से सुरक्षित बच निकलने में सफल रहीं। शाम होते-होते जनरल ह्यूरोज समझ गया कि युद्धरत महिला रानी लक्ष्मीबाई नहीं !
जहां अगले संग्राम में रानी वीरगति को प्राप्त हुईं। वहीं कुछ समय बाद झलकारी देवी को अंग्रेजों ने फांसी दे दी। लेकिन वीरता ही वह गुण है जिसका सम्मान शत्रु भी करता है। अंग्रेजों की जबानी ही झलकारी देवी की वीरता की कहानी बुंदेलखंड ने जानी , हिन्दुस्तान ने मानी।
आजाद हिंदुस्तान ने भी रानी और एक साधारण जाति की महिला में कोई भेदभाव न करते हुए उनकी स्मृति स्वरूप एक डाक टिकट जारी किया। उसी डाक टिकट पर अंकित झलकारी बाई के चित्र के साथ इस वीरांगना को प्रतिभा की कलम से सौ-सौ सलाम।
जय भारत जय बुंदेलखण्ड।