Sat. Dec 20th, 2025

चुनावी चटकारा … वरिष्ठ कवि जीके पिपिल

जीके पिपिल
देहरादून, उत्तराखंड।

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आँधी नहीं इस दफ़ा चुनावी बयार बह रही है
कुंद ही हुई है अपनी धार तलवार कह रही है
कहीं डल रहीं हैं बुनियादें नये-नये भवनों की
किसी किसी क्षेत्र में पुरानी मीनार ढह रही है

 

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