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वरिष्ठ कवि जीके पिपिल की दल बदल पर कुछ पंक्तियां…टकसाली सिक्के भी आजकल खोटे हो गये

जीके पिपिल
देहरादून, उत्तराखंड


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दर्पण

टकसाली सिक्के भी आजकल खोटे हो गये
चेहरे भी अब चहरे न रहकर मुखौटे हो गये
पहले नेता रहते थे जीवनपर्यन्त एक दल में
आजकल के नेता भी बेपेंदी के लोटे हो गये।।

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