अपने आप झर जायेंगे पत्ते उम्र के पीले हैं अभी …

जीके पिपिल
देहरादून
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गज़ल
गांठ प्यार की लगी नहीं पूरी बंधन ढीले हैं अभी
ज़ख्म ऊपर से सूखे लगते हैं अंदर गीले हैं अभी
गठबंधन सच्चा है तो आलिंगन भी हो सकता है
इसी इंतज़ार में मोहब्बत के कई कबीले हैं अभी
किसी के सामने ख़ुद को नुमाया ना कर सके वो
अब क्या बताएं ख़्वाब मेरे बहुत शर्मीले हैं अभी
धूल भरे होते तो भी मेरे पैरों में ना चुभते शायद
तुम तक पहुंचने के रास्ते बहुत पथरीले हैं अभी
सिर्फ़ झुकेंगे ही नहीं वो ज़मीदोज़ भी हो जायेंगे
तूफ़ान के सामने वही दरख़्त जो हठीले हैं अभी
वक़्त गुज़र गया तो फ़िर गुठली भी नहीं मिलेगी
वक़्त पर चूस ले आम जवानी के रसीले हैं अभी
हमें अपने हिस्से के हवा पानी का आनंद लेने दो
अपने आप झर जायेंगे पत्ते उम्र के पीले हैं अभी
04062025