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कवि/शाईर जीके पिपिल का एक मुक्तक

जीके पिपिल
देहरादून, उत्तराखंड

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हमें मोहब्बत की नदी में इस पार से उस पार होना चाहिए था
भले ही हमें नाव पुरानी मिलती उसमें सवार होना चाहिए था
अब नदिया के किनारे से मौजों को ताकने से क्या हांसिल है
हमें नदी में उतरना चाहिए था मौजों से प्यार होना चाहिए था।

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