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फाग के संग होली के रंग… रौनक के साथ लौटा है होली का त्यौहार

भारती पाण्डे, देहारादून 
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मेरी आमा (दादी) कहती थी हमारे बखत होली में चरखा भी गाते थे। उन्हें नहीं पता था गीत किसने लिखे,  पर गाये जाते थे। “मंगेदे बलमा अंबर चरखा मंगेदे\आफी कतुन आफी बणुन,आफी चलूँन ब्योपार\काती सूतन को कुर्ती-पैजाम बणुलों, घाघरी बणुलों\जमफर बणुलों,डबल कमूलों चार।

आजादी का अमृत महोत्सव वर्ष में आज गीत की सार्थकता पर ध्यान गया। पिछले वर्ष कोरोना में कुछ ऐसे ही जोड़ के गीत सुनने को मिले थे। आजकल भी आध्यात्म, प्रकृति-श्रिंगार की होली में सामयिक विषय-समस्याओं पर होली गीत सुनने को मिलते रहें हैं। होली का त्यौहार पूर्व की भांति रौनक के साथ लौटा है। कोरोना के चलते जो उदासीनता के बादल थे अब छँटते नजर आने लगें हैं। वर्षभर प्रतीक्षा के बाद नवल बसंत की ऊर्जा में समूहिक चहल पहल में पुन: नये रंग, प्रेम सौहार्द और एकात्म भाव की अनुभूति होने लगी है। ऐसे में होली के उन गीतों को भी स्मरण कर लेना समीचीन होगा जिन गीतों ने जन भावनाओं को प्रेरित किया।

मथुरा, वृन्दावन, बरसाने में लट्ठ मार होली की धूम मची है तो उत्तराखंड की पारंपरिक खड़ी व बैठ होली का आकर्षण उरुज पर है। सर्वाधिक लंबे समय तक उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में होली-होल्यारों की धूम पूष के प्रथम रविवार से आरंभ फाल्गुन-चैत्र संवत्सर-राम नौमी तक में गतिमान रहती है। पूष-माघ में निर्वाण तथा वैराग्य की होली, वसंत पंचमी से प्रकृति शृंगार, शिवरात्रि से शिव की, होलाष्टक से देवी और एकादशी जिसे रंग एकादशी भी कहा जाता है। रंगानुष्ठान कर कपड़ों पर रंग छिड़का जाता है, मिश्रित गायन का अनूठा रंग लिए होती हैं होलियाँ। हर घर से लाल, सफ़ेद,पीले रंग की कतरनें जिसे चीर करते हैं एकत्रित कर चीर गाई जाती है। पैया (पदम) की टहनी का गोलाकार हैंगर बनाकर उसपर चीर बांधी और गायी जाती है। पूर्णिमा को होली दहन और द्वितीया (दूज)को होली टीका होता है। होली गायन का आरंभ “तुम सिद्धि करो महाराज होली के दिन में और सम्पन्न आशीर्वाद गीत से होता है। गाएँ खेलें देवें आशीष, बरश दिवाली बरसे फाग हो हो होलक रे….।

होली गीतों में काल परिस्थितियों का भी प्रभाव रहा। स्वतन्त्रता संग्राम हो या कोरोना काल या चुनाव पर्व। आध्यात्म और प्रकृति से संबद्ध होली गीतों में विविध भाव-अनुराग का समिश्रण परमानंद की अनुभूति के साथ समाज में जागृति अंकुरण भी करता है। आजादी की लड़ाई में होली बैठकों में गुलामी से निजात पाने हेतु गौर्दा द्वारा रचित होली बैठकों में खूब गयी जाती थीं तो कोरोना काल एवंआजकल के चुनाव में भी हंसी ठिठोली में चेतावनी सम्प्रेषण होली के माध्यम से परिलक्षित हुई। विष्णु पदी-ब्रह्मानन्द ,सूरदास तथा दशावतार की होलियों के मध्य जब देश व सामाजिक सरोकारों से संबद्ध होलियाँ गायी जाती हैं, तब उनका भले ही यह प्रयोग रूप में हों पर होती वजनदार हैं।

स्वतन्त्रता संग्राम के दिनों में बैठकी होली में अंग्रेजों की शासन व्यवस्था पर गीतों के माध्यम से जन जागृति का अभिनव प्रयोग हुआ। लोक कवि गौर्दा ने जलियाँवाला बाग काण्ड के बाद होली रची- ‘होलियाँ’ जलियाँ वाला बाग मची….। शासन की क्रूरता की ओर ध्यानकर्षण तथा संदेश प्रसार करने का प्रयास होली गीतों में हुआ।

“घर घर पुजाई दियो दाज्यु बात हमर पुजाई दियो हो ,
स्वराज की हवा चलि गेछ ,यामे तुमले समेजाया दाज्यु
छोटी छोटी बात बिसार दाज्यु ,फिरंगी को नाश कराई दियो हो।

होली खेलनू कसी यस हालन में ,छन भारत का लाल बेहाल।

समाज सुधार की अभिव्यक्ति के साथ चरखा को प्रोत्साहन देने, गांधीजी को राष्ट्र नायक घोषित करने, स्वदेशी वस्त्रों के प्रति जागृति का भाव पैदा करते गीत भी हैं –’हुआ नया अवतार वंदे भारत में गांधी का’।

‘होली अजब खिलाई मोहन अवतार कान्हाई, सूत कातकर चरखे से मोहन खद्दर चीर पहनाई
विदेशी माल गुलाल उडायो,स्वदेशी रंग उडाई’। आजादी के आंदोलन से इतर होली गीतों में समय समय पर हुए आंदोलनों में भी जन जागृति के गीत गाये जाते रहें हैं। चुनावी रंग की होली- ‘चुनावी रंगै की रंगत न्यारी\ मेरी बारी,मेरी बारी\दिल्ली बै छूटिगे पिचकारी’। (गौर्दा)

कोरोनाकाल में पिछले वर्ष दो चार बैठकें ही हो सकी थीं। तब कोरोना को भागने के लिए गीत बने- ‘भाज रे कोरोना भाज तेर निहुणी हौ\होलिन म हैजो त्यर नाश। कोरोना राकश जब बाटि आय त्यार-ब्यार छन उदास’। और वर्तमान में एकदम नयी होली- ‘तुम झन दिया उनुन कणि भोट \देलो जो हरियाव नोट\हम स्वाभिमानी छौं\गाँठी हमार एक डिपु न्हें\तब ल्है के फ्री नि ल्हयून\हम स्वाभिमानी छौं’। (भारती )

प्रचंड बहुमत प्राप्ति पर इस वर्ष कांवली देहारादून की महिलाएं गा रहीं हैं – ‘आओ ब्रज राज खेलें होरी\गणपति माथ पे तिलक लगो है, रिद्धि सिद्धि मांग भरे होली\योगी मोदी माथ पे तिलक लगो है\विकासक रंग चढ़ो होली रे …..’। परंपरागत तौर पर अमूमन 250-60 वर्ष से यहाँ की होलियों में सामाजिक समरसता, समूहिक एकता व भाईचारे के दर्शन के साथ सामयिक विषयों पर भी होली गीत बने। कह सकते हैं होली में होली गीत आध्यात्म-रंग में ही नहीं सामयिक विषमता, समस्याओं, आंदोलनों का भी नेतृत्व करते रहें हैं।

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