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कवि जीके पिपिल की एक ग़ज़ल… हम कह रहे हैं जिंदगी बदहाल मत करो

जीके पिपिल
देहरादून, उत्तराखंड
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गज़ल
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हम कह रहे हैं जिंदगी बदहाल मत करो
रहने दो इस को जिंदगी सवाल मत करो।

अपने मज़े के वास्ते कुर्बानियों के नाम पर
मूक बधिर मवेशियों को हलाल मत करो।

जनता है जागरूक इसको मूर्ख ना समझ
आँखों में धूल झोंक कर कमाल मत करो।

इमारत न अपने देश की जमींदोज हो कहीं
इसके अंदर कोई मज़हबी भूचाल मत करो।

जो बेच डालें देश को स्वार्थसिद्धि के लिये
पैदा नेताओं के भेष में वो दलाल मत करो।

जब आग वैमनस्य की मुश्किल से है बुझी
बची हुई चिंगारी को अब मशाल मत करो।

दरकार है सहयोग की कोरोना के काल में
करो नहीं तो चुप रहो पर बवाल मत करो।

जमाखोरी जो करते रहे बैंकों के कर्ज़ से
कर्ज़ माफ़ी से उन्हें मालामाल मत करो।

लड़ना है अगर आपको तो सामने से आ
नफ़रत के युद्ध में धर्म को ढाल मत करो।

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