Thu. Nov 21st, 2024

कवि/शाइर जीके पिपिल की एक ग़ज़ल … जो उड़ना चाहते हो तो ये रखो ध्यान में

जीके पिपिल
देहरादून, उत्तराखंड


——————————————————-

गज़ल

जो उड़ना चाहते हो तो ये रखो ध्यान में
बैठने की जगह नहीं होती आसमान में

घोंसले परिंदों के ज़मीन से जुड़े होते हैं
भले वो दरख़्त में हों या फिर मकान में

सोच समझकर उड़ना दानों की चाह में
तीर अभी बाकी हैं रक्षक की कमान में

धीरे से चलकर भी आ जाती है मंजिल
तेज़ गति से जा सकते हो कब्रिस्तान में

अति तो सबकी ही हानिकारक होती है
दूध निकलता है जब आता है उफान में

वो कामयाबी की बारीकियां क्या जाने
जो बैठा नहीं कभी किसी इम्तिहान में

मुश्क ईमानदारी की दूर तक फैलती है
इसके पौधे लगाना जीवन के उद्यान में।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *