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वरिष्ठ कवि/शाइर जीके पिपिल की ग़ज़ल … नस नस अपनी इश्क से भरकर टूट गई अंगड़ाई में

जीके पिपिल
देहरादून, उत्तराखंड


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ग़ज़ल

नस नस अपनी इश्क से भरकर टूट गई अंगड़ाई में
आने लगा है लुत्फ भी हमको अपनी ही रुसवाई में

जीवन का तो मतलब जीना और मरना भी प्यार में
हमको भी अब मरना होगा प्यार की इस गहराई में

इत उत देखूं कित भी देखूं वो ही नज़र आवे है मुझे
उसका ही आभास हुआ है हर साए और परछाईं में

लोग तड़पते होंगे लेकिन, हमको तो आनंद मिला है
जब जब प्यार की चोटें कसकी इस ठंडी पुरवाई में

महक उठा है बदन भी अपना शायद इसी वजह से
उड़ कर आई उनकी खुश्बू जब जब भी अंगनाई में

उनकी आंखों के मिलते ही तन में सिहरन दौड़ गई
जैसे कि स्वर हो गए झंकृत तन की इस शहनाई में

कान बार बार तरसे हैं उनकी आमद की आहट को
उन्हें तलाशती फिरी हैं नज़रें महफ़िल की तन्हाई में

अगर मुबारकबाद हो देनी तो सीने से लगकर दे दो
असर कहां वो रह पाता है खत पर लिखी बधाई में

ऐसा ही कुछ होता होगा असर प्यार करने वालों पर
मिठास हमें भी लगी है आने नीम से बनी मिठाई में।

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