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कृष्ण जन्माष्टमी पर कवि जगदीश ग्रामीण की कान्हा को समर्पित एक रचना

जगदीश ग्रामीण
देहरादून,उत्तराखंड


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वाह रे कान्हा!
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कान्हा तेरा वो माखन चुराना
गली गली मुरली तान सुनाना
गोपी ग्वालों संग गाय चराना
आज भी मदहोश कर जाता है।

मथुरा जेल में तेरा जन्म लेना
कंस के कपट को चुनौती देना
रण में गीता ज्ञान सुना जाना
आज भी दीवाना कर जाता है।

गोपियों संग नित रास रचाना
द्वारिका नगरी नई बसा जाना
विप्र सुदामा से मीत निभाना
आज भी हर्षित कर जाता है।

देवकी का दर्द मिटा जाना
यशोदा का मान बढ़ा जाना
धर्मार्थ कुरुक्षेत्र सजा जाना
आज भी गर्वित कर जाता है।।

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