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बाल दिवस पर विशेष: कवि वीरेंद्र डंगवाल “पार्थ” की बाल कविताएं

वीरेंद्र डंगवाल “पार्थ”
देहरादून, उत्तराखंड

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उठो पारस उठो सुरेखा

सूरज ने धरती को देखा
उठो पारस उठो सुरेखा।
डाल डाल पर फूल खिले हैं
भ्रमर आकर उनसे मिले हैं।।

उठो पारस उठो सुरेखा

आंगन में चिड़िया आई है
नई सुबह की खबर लाई है।
महक रहा है उपवन देखो
आनंदित परिमल से सीखो।।

उठो पारस उठो सुरेखा

पानी लाई जल्दी पी लो
उठ जाओ ब्रश भी कर लो।
योग करो फिर चलो नहाने
नहीं चलेंगे कुछ भी बहाने।।

उठो पारस उठो सुरेखा

स्कूल हो या इतवार भले ही
मेहनत जग में सदा फले ही।
नियमित रहना हरदम सीखो
जीवन सफल बनेगा देखो।।

उठो पारस उठो सुरेखा

मात पिता गुरुजन कहना
सदा मानना भाई बहना।
भला करोगे मिलेगा दूना
तुमने ही तो गगन है छूना।।

उठो पारस उठो सुरेखा।

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मूछों वाला बनिया

आओ सौरभ आओ मुनिया
आओ गौरव आओ धनिया
देखो, खेल खिलौने लाया
फिर से मूछों वाला बनिया।

आओ सौरभ आओ मुनिया
आओ गौरव आओ धनिया।

नीले पीले लाल गुब्बारे
लगते कितने प्यारे प्यारे
पीं पीं वाला बाजा भी है
मुकुट पहने राजा भी है।

आओ सौरभ आओ मुनिया
आओ गौरव आओ धनिय।

बोली मुनिया, देखो गुड़िया
मां के संग बैठी है बिटिया
गुड़िया लगती राजकुमारी
मेरी बहना सी प्यारी प्यारी।

आओ सौरभ आओ मुनिया
आओ गौरव आओ धनिया।

घोड़ा भी है हाथी भी है
बन्दर के संग साथी भी है
डम डम बजता डमरू भी है
छम छम बजते घुंघरू भी है।

आओ सौरभ आओ मुनिया
आओ गौरव आओ धनिया।

तीर कमान गदा भी देखो
भालू और गधा भी देखो
चंदा सूरज और तारे भी
नाव नाविक पतवारें भी।

आओ सौरभ आओ मुनिया
आओ गौरव आओ धनिया।

बच्चो की टोली हंसी ठिठोली
मोहक कितनी प्यारी बोली
उनको भाए खूब खिलौने
सब ने खरीदे दूने दूने।

जाओ सौरभ जाओ मुनिया
जाओ गौरव घर जाओ धनिया।।

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