विभूति: समाज के सजग प्रहरी.. विद्या दत्त रतूड़ी
जगदीश ग्रामीण
रामनगर डांडा, थानों, देहरादून
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टिहरी गढ़वाल प्रतापनगर विकास खंड के ग्राम जेवाला में 1930 में जन्मे राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित, सेवानिवृत्त जिला विद्यालय निरीक्षक, उत्तराखंड आंदोलनकारी श्रद्धेय विद्या दत्त रतूड़ी 90 वर्ष की उम्र में आज भी सक्रिय रूप से समाजसेवा में तल्लीन हैं। रतूड़ी दम्पति उत्तराखंड आंदोलनकारी होने के साथ ही सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। समाज में व्याप्त रूढ़ियों, अंधविश्वास, बाल विवाह, कन्या विक्रय कुप्रथा, मद्यपान, पशुबलि प्रथा को समाप्त करने के लिए आपने जीवन भर प्रयास किया और सफलता प्राप्त की।
1956 में रियासती युग से प्रतिबंधित रामलीला का लम्बगांव में मंचन कराकर आपने आजादी की महत्ता समझाई। जबकि, टिहरी रियासत के राजा नहीं चाहते थे कि एक राज्य में दो-दो राजतिलक हों। आपके प्रयास से ही 1969 में राजराजेश्वरी मंदिर में “बेला बलि प्रथा” व “सेम नागराजा मंदिर मुखेम” में बकरों की बलि प्रथा बंद हुई। 1970 में उत्तरकाशी जिले के गमरी पट्टी के क्यारी गांव में नवरात्र के आठवें दिन भैंसे की बलि दी जानी थी। पंचों की तलवारें बागी के रक्त से अपनी प्यास बुझाने के लिए चमक रही थीं। आपने तब अपनी जान की परवाह किये बिना मरणासन्न निरीह पशु की जान अपने ठोस तर्कों से बचाई। ममतामयी माताएं बोल उठीं, जुग-जुग जियो मेरे लाल।
धार्मिक कार्यों में भी आपने अनूठी मिसाल कायम की है। 1981 में थलकेश्वर महादेव मंदिर का जीर्णोद्धार व शिव पुराण का आयोजन, 1987 में उत्तरकाशी में शत कुंडीय गायत्री महायज्ञ व राष्ट्रीय एकता सम्मेलन,1988 में सहजनवा गोरखपुर में 24 सत वेदीय दीप यज्ञ, 2007 में ढालवाला ऋषिकेश में पंच कुंडीय गायत्री त्रिदिवसीय महायज्ञ, 2009 में श्री कृष्ण नागराजा की धरती सेम मुखेम में अष्टादश पुराण, रुद्रयाग शतचंडी व पंच कुंडीय नवाह यज्ञ सम्पन्न करवाया। 2010 में हरिद्वार कुंभ में 131 देव डोलियों के साथ देवताओं का गंगा स्नान आपकी सोच व मार्गदर्शन में सम्पन्न हुआ। 2013 की केदारनाथ आपदा के मृतकों की आत्मा की शांति के लिए 28 सितंबर से 4 अक्टूबर 2013 तक शंकराचार्य आश्रम दण्डीवाड़ा ऋषिकेश में अष्टोत्तर शत श्रीमदभागवत महापुराण का दिव्य आयोजन व पितृ तर्पण यज्ञ करवाया।
सामाजिक कार्यों में व्यय करते हैं पेंशन
उत्तराखंड आंदोलन की अलख जगाने की बात हो या 2 सितंबर 1994 के मसूरी गोली कांड के बाद मसूरी कूच हो, दिल्ली रैली हो, रतूड़ी हमेशा इंद्रमणि बडोनी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चले। रतूड़ी दम्पति अनेक बार आंदोलन के दौरान जेल भी गए। आप उक्रांद के संरक्षक भी रहे। प्रत्येक अच्छे कार्य में सहयोग करने वाले रतूड़ी अपनी पेंशन की अधिकांश धनराशि सामाजिक व धार्मिक कार्यों में व्यय करते हैं। उम्र के इस पड़ाव पर रतूड़ी आज भी स्वस्थ, सक्रिय, सजग एवं प्रसन्नमना हैं।
शिक्षा में अतुलनीय योगदान पर मिला राष्ट्रपति पुरस्कार
1973 में शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान, विद्यालय की बहुमुखी प्रगति, सामाजिक कार्यों के लिए आपको राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। “एशिया प्रसंग” में एशिया महाद्वीप के लगभग 2300 विशिष्ट व्यक्तियों का जीवन परिचय प्रकाशित किया गया, जिसमें आपको स्थान मिला। गढ़ केसरी पत्रिका ने 2013 के जनवरी अंक में आपका जीवन परिचय प्रकाशित किया। दिसंबर 2013 में जगदीश ग्रामीण की पुस्तक “आंख्यों मा आंसू” में आपके जीवन के विभिन्न पहलुओं को सबके सम्मुख लाने का प्रयास किया गया है।
गृहस्थ होकर भी संतों सा जीवन व्यतीत करने वाले श्रद्धेय रतूड़ी जी को नमन, वंदन, अभिनन्दन।