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कवि/शाइर जीके पिपिल की गजल … अपनी बात को इस तरह सोच समझकर बोल

जीके पिपिल
देहरादून, उत्तराखंड


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गज़ल

अपनी बात को इस तरह सोच समझकर बोल
कि बनाने वाली बात में भी ना पड़े कोई झोल

जो भी हक़ीक़त है उसे हर हाल में नुमाया कर
उतारकर फेंक दे अब सारे आवरण सारे खोल

दो दो नावों में पैर रखने से नदी पार नहीं होती
ज़िंदगी पेंडुलम बन जायेगी होती है डांवांडोल

ज़िंदगी के एक एक क्षण का सदुपयोग कर ले
ज़िंदगी कीमती के साथ साथ है बड़ी अनमोल

कुसंगत कभी कोई शुभ काम नहीं करने देती
कुत्सित लोगों से नहीं रखना अपना मेलजोल

उनसे भी काम हो सकता है जिन्हें बुरा कहा है
दुनियां एक सर्कल की शक्ल है बिलकुल गोल

कटुता है अब हर तरफ़ वातावरण भी विषाक्त
नव वर्ष के आरम्भ से सदभावना का रस घोल

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