वरिष्ठ कवि जीके पिपिल की रचना … जग के मेले में कैसे कैसे कमाल देखे
जीके पिपिल
देहरादून, उत्तराखंड
—————————————————–
गज़ल
जग के मेले में कैसे कैसे कमाल देखे
समाज सेवकों के भेष में दलाल देखे
नेता मसरूफ हैं ख़ुद का पेट भरने में
गरीब के तो वही रोटी के सवाल देखे
जो दे रहे थे बधाइयां मुझे जीतने की
उनके दिलों में ही ज्यादा मलाल देखे
सिद्धांत का नहीं तिकड़म का खेल है
जो गधों के हाथ होते शेर हलाल देखे
गठीले तन देखे हड्डियों में शक्ति देखी
बुढ़ापे में बुझते चेहरों पर ज़माल देखे
खूबसूरती के पीछे चलती नज़रें देखीं
दिलों में लोगों के कामुक ख्याल देखे
कहीं रात का अंधेरा जुगनू को तरसा
कहीं उजाले दिन में लिए मशाल देखे
कहीं लूटा है अंधों ने कटती पतंग को
कहीं मौन की नगरिया में धमाल देखे
धर्म के बज़ार में ईमान की मंदी देखी
फिरक़ापरस्ती के अजब उछाल देखे