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कवि/शाइर जीके पिपिल की गज़ल … तीरगी इस क़दर मेरी राहों में आफताब लाए

जीके पिपिल
देहरादून, उत्तराखंड

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गज़ल

तीरगी इस क़दर मेरी राहों में आफताब लाए
गिनती भी ना कर पाया उतने बेहिसाब लाए

बीती जाती हैं ज़िंदगी उसी सागर को पीने में
जिसके पीने से ना नींद आई ना ख़वाब आए

जो जीते जी तो आए नहीं और अब कब्र पर
चढ़ाने को चादर लाए रखने को गुलाब लाए

जिन खतों को लिखा नहीं मन में सोचते रहे
उनके आने से मानो उन सबके जवाब आए

उन पलों का शुक्रिया करो जो साथ में गुजरे
उसके बाद भले कितने ही दिन ख़राब आए

ढलती उम्र पर ना जा अभी भी इश्क कर ले
आजमाकर तो देख ना चहरे पे शबाब आए।

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